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यह एक छोटा उपदेश है जिसमें इस्लामी कैलेंडर के अनुसार हिजरी वर्ष में मुहर्रम के महीने की विशेषताओं का वर्णन किया गया है, साथ ही मुहर्रम के दसवें दिन रखे जाने वाले आशूरा के उपवास का गुण भी बताया गया है।

    موضوع الخطبة :تعظيم شهر محرم، وفضل صوم يوم عاشوراء

    الخطيب : فضيلة الشيخ ماجد بن سليمان الرسي/ حفظه الله

    لغة الترجمة : الهندية

    المترجم :طارق بدر السنابلي ((@Ghiras_4T

    शीर्षक:

    मोहर्रम के महीने का सम्मान एवं आशूरा के उपवास की श्रेष्ठता

    إنَّ الْحَمْدَ لِلَّهِ، نَحْمَدُهُ وَنَسْتَعِينُهُ وَنَسْتَغْفِرُهُ، وَنَعُوذُ بِاللَّهِ مِنْ شُرُورِ أَنْفُسِنَا وَمِنْ سَيِّئَاتِ أَعْمَالِنَا، مَنْ يَهْدِهِ اللَّهُ فَلَا مُضِلَّ لَهُ، وَمَنْ يُضْلِلْ فَلَا هَادِيَ لَهُ، وَأَشْهَدُ أَنْ لَا إلـٰه إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ.

    (يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللّهَ حَقَّ تُقَاتِهِ وَلاَ تَمُوتُنَّ إِلاَّ وَأَنتُم مُّسْلِمُون).

    (يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُواْ رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالاً كَثِيراً وَنِسَاء وَاتَّقُواْ اللّهَ الَّذِي تَسَاءلُونَ بِهِ وَالأَرْحَامَ إِنَّ اللّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبا).

    (يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَقُولُوا قَوْلاً سَدِيداً * يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَالَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَمَن يُطِعْ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ فَازَ فَوْزاً عَظِيما).

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    सर्वश्रेष्ठ बात अल्लाह की बात है एवं सर्वश्रेष्ठ मार्ग मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मार्ग है। सबसे दुष्ट चीज़ इस्लाम में अविष्कार की गई नवोन्मेष हैं, प्रत्येक अविष्कार की गई चीज़ नवाचार है हर नवाचार गुमराही है एवं हर गुमराही नरक की ओर ले जाने वाली है।

    ए मुसलमानो! अल्लाह से डरो एवं उसका भय अपने हृदय में जीवित रखो। उसके आज्ञाकारी बनो एवं अवज्ञा से वंचित रहो। ज्ञात रखो कि अल्लाह तआ़ला के अपने सृष्टि का पालनहार होने का एक साक्ष्य यह भी है कि उसने कुछ समयों का चयन कर लिया है एवं उन्हें अन्य समय की तुलना में सम्मान एवं श्रेष्ठता प्रदान की है, उन समयों में से मोहर्रम का महीना भी है। यह एक महान एवं बरकत वाला महीना है। हिजरी वर्ष का यह प्रथम महीना है। यह उन निषिद्ध महीनों में से एक है जिनके संबंध में अल्लाह ताआ़ला का कथन है:

    (إِنَّ عِدَّةَ الشُّهُورِ عِنْدَ اللَّهِ اثْنَا عَشَرَ شَهْرًا فِي كِتَابِ اللَّهِ يَوْمَ خَلَقَ السَّمَوَاتِ وَالْأَرْضَ مِنْهَا أَرْبَعَةٌ حُرُمٌ ذَلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ فَلَا تَظْلِمُوا فِيهِنَّ أَنْفُسَكُمْ).

    अर्थात: "महीनों की गणना अल्लाह के निकट अल्लाह की पुस्तक में १२ की है, उसी दिन से जब से आकाश एवं पृथ्वी को उस ने पैदा किया, उनमें से चार निषिद्ध एवं विनम्र हैं, यही सत्य धर्म है, तुम इन महीनों में अपनी प्राणों पर अत्याचार मत करो।"

    (तुम इन महीनों में अपनी प्राणों पर अत्याचार मत करो।) अर्थात: इन निषिद्ध महीनों में, क्योंकि अन्य महीनों की तुलना में इनमें पाप की गंभीरता अधिक बढ़ जाती है।

    अल्लाह का कथन: (तुम इन महीनों में अपनी प्राणों पर अत्याचार मत करो।) का उल्लेख करते हुए इब्ने अ़ब्बास रज़ि अल्लाहू अ़न्हुमा फ़रमाते हैं: "संपूर्ण महीनों में अपनी प्राणों पर अत्याचार ना करो, फिर अल्लाह ने उनमें से ४ महीनों को चिन्हित किया एवं उन्हें निषिद्ध स्थित किया। उनकी निषिद्धता को महानता प्रदान की, उनमें किए जाने वाले पापों को अधिक गंभीर बताया एवं उनमें पुण्य-कर्म करने का सवाब एवं बदला कई गुना बढ़ा दिया।"

    इब्ने अब्बास रज़ि अल्लाहू अ़न्हुमा का कथन समाप्त हुआ।

    अल्लाह का कथन: (तुम इन महीनों में अपनी प्राणों पर अत्याचार मत करो।) का उल्लेख करते हुए क़तादा फ़रमाते हैं: "निषिद्ध महीनों में अत्याचार करने का पाप अन्य महीनों की तुलना में कहीं बड़ा एवं गंभीर होता है, यह और बात है कि अत्याचार प्रत्येक स्थिति में एक गंभीर अपराध है, परंतु अल्लाह तआ़ला जिस चीज़ को चाहता है श्रेष्ठ बना देता है।"

    इसके अतिरिक्त आप फ़रमाते हैं: अल्लाह ने अपनी सृष्टि में ऐसे कुछ दासों का चयन किया है, देवदूतों में से कुछ को राजदूत के रूप में एवं मनुष्य में से कुछ को दूत के रूप में चयन किया है। पृथ्वी में मस्जिदों का चुनाव किया है, महीनों में से रमज़ान एवं निषिद्ध महीनों को चुना है। दिनों में से शुक्रवार के दिन का चयन किया है, रात्रियों में से शुभरात्रि (शब-ए-क़द्र) को चुना है, इस कारणवश आप लोग भी उनका आदर कीजिए जिनको अल्लाह ने महान बनाया है, क्योंकि बुद्धिमान लोगों के निकट संपूर्ण चीज़ों की महानता की गुणवत्ता वही है जिसके माध्यम से अल्लाह ने उसको सम्मानित किया है। यह कथन इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह के उल्लेखनीय से संक्षेप के साथ प्रतिलिपि की गई है।

    अबू बकरा रज़ि अल्लाहू अ़नहु नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रिवायत करते हैं कि आप ने फ़रमाया: "वर्ष १२ महीनों का होता है इनमें से चार महीने निषिद्ध हैं, तीन तो लगातार, अर्थात: ज़िल्-क़ादा,ज़िल्-हिज्जा एवं मुहर्रम और चौथा रजब-ए-मुज़र जो जुमादल्-उख़रा एवं शाबान के बीच में पड़ता है।

    (इसे बुख़ारी:३१९७, एवं मुस्लिम: १६७९ ने रिवायत किया है।)

    मोहर्रम के महीने को यह नाम इसलिए दिया गया है कि वह निषिद्ध महीना है उसकी निषिद्धता एवं श्रेष्ठता की कठोरता के रूप में।

    रजब-ए-मुज़र को यह नाम इस कारणवश दिया जाता है क्योंकि मुज़र समाज इस महीने को अपने स्थान से नहीं फेरता था बल्कि उसके समय पर ही उसको स्थित मानता था, अ़रब के अन्य समाज के विरुद्ध, वे युद्ध की परिस्थिति में निषिद्ध महीनों को उनके वास्तविक समय से फिर देते थे। उनका यह कार्य अन्-निस्ई के नाम से जाना जाता है।अल्लाह तआ़ला ने इन महीनों को जो उच्च स्थान एवं सम्मान प्रदान किया है उनका ध्यान रखा जाना चाहिए, उदाहरण स्वरूप: इन महीनों में युद्ध लड़ना अवैध ठहराया है एवं पापों को करने से कठोरता के साथ रोका है।

    ???? ए मोमिनो! सृष्टि पर अल्लाह के पालनहार होने का एक साक्ष्य यह भी है कि उसने कुछ दिनों का चयन कर लिया है, एवं उन दिनों में की जाने वाली उपासनाओं को अन्य दिनों की उपासना पर महानता एवं श्रेष्ठता प्रदान की है, उन्हीं दिनों में से आशूरा (१०वीं मुहर्रम) का दिन भी है,

    इस्लामी कैलेंडर के अनुसार हिजरी वर्ष के मोहर्रम का यह १०वां दिन है, इस दिन की महानता की एक सुखद पृष्ठभूमि है, वह इस प्रकार की जब अल्लाह तआ़ला ने अपने दूत मूसा अलैहिस्सलाम को पानी में डूबने से बचा लिया एवं फ़िरऔ़न को उसके संगियों सहित पानी में डूबा दिया तो मूसा अलैहिस्सलाम ने इस वरदान पर अल्लाह को आभार व्यक्त करते हुए १०वीं मुहर्रम का उपवास रखा, इसके पश्चात अहल-ए-किताब -यहूद एवं नसारा- ने भी इस उपवास को रखना प्रारंभ कर दिया, फिर अज्ञानता युग के अ़रब लोग भी यह उपवास रखने लगे जो मूर्ति पूजा करते थे अहल-ए-किताब नहीं। इस कारणवश क़ुरैश समाज भी अपने अज्ञानता युग में इस दिन का उपवास रखा करता था। फिर जब रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम प्रवास करके मदीना पहुंचे तो आपने यहूदियों को इस दिन का उपवास रखते हुए देखा, तो आपने इसका कारण जानने हेतु प्रश्न किया: तुम इस दिन उपवास क्यों रखते हो? उन्होंने उत्तर देते हुए कहा: यह बहुत ही महान दिन है, इसी दिन अल्लाह तआ़ला ने मूसा अलैहिस्सलाम को बचाया था, एवं फ़िरौन और उसके संगियों को डुबो दिया था, उसका आभार व्यक्त करते हुए मूसा अलैहिस्सलाम ने इस दिन का उपवास रखा था, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: तुम्हारी तुलना में मैं मूसा अलैहिस्सलाम से अधिक निकट हूं, इस कारणवश आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने स्वयं इस दिन का उपवास रखना प्रारंभ कर दिया एवं अपने साथियों (सहाबा) रज़ि अल्लाहू अ़न्हुम को भी इस उपवास के रखने का आदेश दिया।

    (इसे बुख़ारी: २००४, मुस्लिम: ११३० ने रिवायत किया है और उल्लेख किए गए शब्द मुस्लिम के हैं।)

    बल्कि इस दिन यहूदी त्यौहार मनाते थे, अपनी महिलाओं को आभूषण पहनाते थे एवं (सुंदर वस्त्रों को पहना कर) उन्हें सजाते और श्रृंगार करते थे।

    (इसे मुस्लिम:११३१ ने रिवायत किया है, इस अध्याय में अबू मूसा अशअ़री रज़ि अल्लाहू अ़नहु से भी हदीस मरवी है जिसे बुख़ारी: २००५ ने रिवायत किया।)

    अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि अल्लाहु अ़न्हुमा का कथन है कि यहूद एवं नसारा भी आशूरा के दिवस का सम्मान करते थे।

    (मुस्लिम:११३४)

    आइशा रज़ि अल्लाहू अ़नहा का कथन है कि "अज्ञानता युग में क़ुरैश के लोग भी आशूरा का उपवास रखते थे एवं नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी इसे स्थित रखा था। जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मदीना आगमन हुआ तो स्वयं आपने भी इस दिवस का उपवास रखा एवं अपने साथियों (सहाबा) रज़ि अल्लाहू अ़न्हुम को भी इस उपवास के रखने का आदेश दिया। परंतु जब रमज़ान का उपवास रखना अनिवार्य किया गया तो इसके पश्चात आप ने आदेश दिया कि जो चाहे आशूरा का उपवास रखे और जो चाहे ना रखे।"

    इसे बुख़ारी:२००२, मुस्लिम: ११२५ ने रिवायत किया है, इस अध्याय में इब्ने उ़मर रज़ि अल्लाहू अ़न्हुमा से भी हदीस मरवी है जिसे बुख़ारी:१८९२, मुस्लिम: ११२६ ने रिवायत किया है।)

    आइशा रज़ि अल्लाहू अ़नहा का कथन है: इसी दिन क़ुरैश काबा का आवरण किया करते थे। (बुख़ारी: १५९२)

    अर्थात: उस पर वस्त्र आदि डालकर उसके सम्मान का प्रदर्शन किया करते थे।

    जब अल्लाह तआ़ला ने रमज़ान के उपवास को अनिवार्य किया तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुसलमानों को यह सूचना दी कि जो चाहे आशूरा का उपवास रखे और जो चाहे ना रखे, अर्थात आशूरा का उपवास रमज़ान के उपवास की तरह अनिवार्य नहीं है, बल्कि यह उपवास मुस्तहब है, इस कारणवश जो व्यक्ति यह उपवास रखेगा वह इंशाल्लाह बड़े लाभ से सम्मानित किया जाएगा। एक व्यक्ति ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से प्रश्न किया: आप कैसे उपवास रखते हैं? तो आप ने उत्तर दिया: "हर महीने में तीन उपवास एवं रमज़ान के उपवास सदैव उपवास रखने के समान हैं, अ़रफ़ा दिवस के उपवास के संबंध में मैं अल्लाह से आशा करता हूं कि वह १ वर्ष पूर्व एवं १ वर्ष पश्चात के पापों का कफ़्फ़ारा होगा एवं अल्लाह से यही आशा करता हूं कि आशूरा (१०वीं मुहर्रमुल्-हराम) का उपवास १ वर्ष पूर्व के पापों का कफ़्फ़ारा होगा।"

    (इसे मुस्लिम: ११६२ ने अबू क़तादह रज़ि अल्लाहू अ़नहु से रिवायत किया है।)

    वो संपूर्ण छोटे-छोटे पाप जो मनुष्य से पूर्व के १ वर्ष में हुआ करते हैं, उन संपूर्ण पापों को इस दिन के उपवास के माध्यम से क्षमा कर देता, रही बात बड़े पापों की तो यह सत्य पश्चाताप से ही क्षमा होते हैं, अल्लाह तआ़ला बड़ा ही कृपालु एवं दयालु है।

    ???? ए सलमानो! आशूरा के उपवास के इसी उच्च स्थान के आधार पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बहुत ही व्यवस्था पूर्वक इस उपवास को रखते थे, उदाहरण स्वरूप अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि अल्लाहु अ़न्हुमा का कथन है कि "मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को आशूरा दिवस एवं रमज़ान के उपवास के अतिरिक्त अन्य दिनों में श्रेष्ठता का ज्ञात रखते हुए विशेष रुप से उपवास रखते नहीं देखा।

    (इसे बुख़ारी: २००६, मुस्लिम: ११३२ ने रिवायत किया है।)

    पूर्व के महान व्यक्तियों (सलफ़-ए-सालिहीन) का एक समूह यात्रा के दौरान भी आशूरा दिवस का उपवास रखता था, ताकि वे इस श्रेष्ठता से वंचित न रहें, इब्ने रजब रहिमहुल्लाह का कथन है:

    पूर्व के महान व्यक्तियों (सलफ़-ए-सालिहीन) का एक समूह यात्रा के दौरान भी आशूरा दिवस का उपवास रखता था, उदाहरण स्वरूप: इब्ने अब्बास, अबू इस्हाक़ अस्-सबीई़ एवं ज़ोहरी, ज़ोहरी कहते थे: रमज़ान के (छूटे हुए उपवासों) को अन्य दिनों में पूरा किया जा सकता है परंतु आशूरा की श्रेष्ठता से वंचित रह गए (तो उसे पूरा नहीं किया जा सकता।) (इसे बैह़क़ी ने शअ़बुल्-ईमान: ३/३६७ में रिवायत किया है, प्रकाशक: दारुल्-कुतुब अल्-इल्मिया।)

    इमाम अहमद ने इसका उल्लेख किया है कि आशूरा का उपवास यात्रा के दौरान भी रखा जा सकता है। इब्ने रजब रहिमहुल्लाह का कथन समाप्त हुआ। (लताइफ़ुल्-मआ़रिफ़ फ़ीमा लिमवासिमिल्-आ़मि मिनल्-वज़ाइफ़: पृष्ठ संख्या: ११०, शोधकर्ता: यासीन मुहम्मद अस्-सव्वास, प्रकाशन: ५, प्रकाशक: दारु-इब्ने कसीर, दिमश्क़।)

    सहाबा रज़ि अल्लाहू अ़न्हुम अपनी संतानों को उपवास की आदत डालने हेतु आशूरा का उपवास रखाते थे, रबीआ़ बिनते मुअ़व्विज़ रज़ि अल्लाहू अ़न्हा का कथन है कि आशूरा दिवस के प्रातः नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अंसार के महल्लों में यह सूचना फैला दी जिसने प्रातः के समय कुछ खा-पी लिया हो वह दिन के बचे हुए समयों को (उपवास रखने वालों की समान) व्यतीत करे एवं जिसने कुछ ना खाया-पिया हो वह उपवास से रहे। फिर बाद में भी (रमज़ान के उपवास के अनिवार्य होने के पश्चात) हम लोग भी उपवास रखते थे और अपनी संतानों से भी रखवाते थे, उन्हें हम ऊन का खिलौना दे कर बहलाए रखते थे, जब कोई खाने के लिए रोता तो हम वही दे देते, यहां तक कि उपवास तोड़ने का समय आ जाता।

    (इसे बुख़ारी: १९६०, मुस्लिम: ११३६ ने अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि अल्लाहु अ़न्हुमा रिवायत किया है।)

    ???? अल्लाह के दासो! आशूरा दिवस के उपवास का वैध ढंग (मसनून तरीक़ा) यह है कि उसके संग नवीं मोहर्रम का उपवास भी रखा जाए, इसका साक्ष्य नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यह कथन है: "यदि मैं आगामी वर्ष जीवित रहा तो मोहर्रम की नवीं तिथि का भी उपवास रखूंगा।"

    (इसे मुस्लिम: ११३४ ने अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि अल्लाहु अ़न्हुमा रिवायत किया है।)

    अर्थात: यदि मैं आगामी वर्ष तक जीवित रहा एवं मेरी मृत्यु नहीं हुई तो मैं दसवीं तिथि के संग नवीं तिथि का भी उपवास रखूंगा। परंतु आगामी वर्ष के आशूरा दिवस से पूर्व ही नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मृत्यु हो गई।

    ???? ए लोगो! दसवीं तिथि के संग नवीं तिथि के उपवास रखने का मूल कारण यह है कि मुसलमान यहूदियों के सादृश्य से वंचित रह सकें, क्योंकि यहूद दसवीं मोहर्रम का उपवास रखा करते थे, इस कारणवश नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह बात नहीं भाई कि आप उनके सादृश्य को अपनाएं। इस कारणवश आपने सादृश्य से वंचित रहने हेतु दसवीं तिथि के संग नवीं तिथि के उपवास रखने का भी निर्देश दिया। इस्लाम धर्म की विशेषता है कि उसके आज्ञाकार अपनी उपासनाओं में अन्य समुदाय एवं धर्म के आज्ञाकारों से भिन्न रहते हैं।

    यदि कोई यह प्रश्न करे कि क्या केवल दसवीं मोहर्रम का उपवास रखना वैध है? तो इसका उत्तर है: हां! परंतु श्रेष्ठ यह है कि उस से १ दिन पूर्व भी उपवास रखा जाए। यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत से सिद्ध है: "यदि मैं आगामी वर्ष जीवित रहा तो मोहर्रम की नवीं तिथि का भी उपवास रखूंगा।"

    अल्लाह तआ़ला हमें एवं आपको सर्वश्रेष्ठ क़ुरआन के लाभों से लाभार्थी करे, मुझे एवं आपको क़ुरआन के श्लोकों एवं बुद्धिमत्ता पर आधारित सलाहों से लाभार्थी करे, मैं अपनी यह बात कहते हुए अपने लिए एवं आप संपूर्ण के लिए अल्लाह से क्षमा मांगता हूं, आप भी उस से क्षमा प्रार्थी हों। निः संदेह वह अधिक क्षमा स्वीकार करने वाला एवं अधिकतम दया करने वाला है।

    द्वितीय उपदेश:

    الحمد لله وحده، والصلاة والسلام على من لا نبي بعده.

    ए मुसलमानो! अल्लाह तआ़ला ने दिन एवं रात्रि को एक महान बुद्धिमत्ता के अंतर्गत पैदा किया है और वह है कर्म। ज्ञात हुआ कि अल्लाह ने दिन एवं रात्रि को यूं ही पैदा नहीं किया, अल्लाह का कथन है:

    (وَهُوَ الَّذِي جَعَلَ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ خِلْفَةً لِمَنْ أَرَادَ أَنْ يَذَّكَّرَ أَوْ أَرَادَ شُكُورا)

    अर्थात: "उसी ने रात्रि एवं दिन को एक दूसरे के पश्चात आने-जाने वाला बनाया, उस व्यक्ति हेतु जो सलाह प्राप्त करने एवं आभार व्यक्त करने की इच्छा रखता हो।"

    इसके अतिरिक्त अल्लाह का कथन है:

    (الذي خلق الموت والحياة ليبلوكم أيكم أحسن عملا).

    अर्थात: "जिसने मृत्यु एवं जीवन को इसलिए पैदा किया कि तुम्हारी परीक्षा ले कि तुम में से कर्म को सुंदरता के साथ कौन करता है?"

    तिर्मीज़ी ने रिवायत किया है: अबू बरज़ा असलमी रज़ि अल्लाहू अ़नहु कहते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कथन है: प्रलय के दिन किसी भी दास के दोनों पांव नहीं हटेंगे यहां तक कि उस से यह प्रश्न ना कर लिया जाए, उसकी आयु के संबंध में कि उसने किन कार्यों में समापन किया, उसके ज्ञान के बारे में कि उस पर उसने कितना कर्म किया, उसकी संपत्ति के संबंध में कि उसने उसे कहां से कमाया और कहां व्यतीत किया, एवं उसके शरीर के संबंध में कि उसने उसे कहां खपाया।"

    (इसे तिर्मीज़ी: २४१७ ने रिवायत किया है एवं कहा है कि हसन है।)

    ???? ए मोमिनो! इन दिनों हम पूर्व वर्ष को अलविदा कह रहे हैं जिसका हम ने दर्शन किया एवं एक नए वर्ष का स्वागत कर रहे हैं, कोई मुझे बताए कि हमने पूर्व वर्ष (के कर्मों की पुस्तक) में अपने किन कर्मों को जोड़ा? एवं नव वर्ष के अंदर हम किन कर्मों का स्वागत कर रहे हैं? वर्ष बहुत ही गति के साथ गुज़र रहे हैं, इसी वर्ष को देख लीजिए! ऐसे गुज़रा जैसे कोई दिन या घड़ी गुज़री हो, इस कारणवश हमें अपना हिसाब स्वयं करना चाहिए, हमने इस वर्ष को स्वर्ग से निकट और नरक से दूरी को प्राप्त करने में कहां तक प्रयोग किया? हमने अल्लाह की आज्ञाकारी में कितनी चपलता का प्रदर्शन किया? हमने पूरे वर्ष में कितनी प्रसवोत्तर (नफ़्ली) नमाज़ें पढ़ीं एवं उपवास रखे? हमने कितना दान-पुण्य किया? कितना समय अल्लाह के स्मरण में व्यतीत किया? कितनी बार (नमाज़ के) प्रथम समय में मस्जिद पहुंचे? क्या हम पापों एवं अवज्ञाओं से वंचित रहे?क्या हम ने अवैध चीज़ों को देखने से अपने नयनों को नीचे रखा? क्या हमने लोगों की बुराई करने एवं असत्य बातों को बोलने से अपनी जीभ को रोके रखा? क्या हमने अपने हृदय को द्वेष, नफ़रत एवं ईर्ष्या से स्वच्छ रखा? क्या हमने अपने पड़ोस के लोगों, परिवार के लोगों एवं अपने नौकरों के साथ सभ्य व्यवहार किया? अपनी महिलाओं को कितनी बार पर्दा, हिजाब एवं लज्जा का आदेश दिया एवं उन्हें नग्नता व मेल-मिलाप से कितनी बार रोका?

    ???? ए लोगो! १ वर्ष के पूरा होने एवं द्वितीय वर्ष के प्रारंभ होने से तीन बातें अनिवार्य होती हैं:

    (१) इस बात पर अल्लाह को आभार व्यक्त करना कि उसने जीवन को व्यतीत करने का एक और अवसर प्रदान किया।

    (२) पूर्व के महीनों एवं वर्षों के प्रकाश में आत्म उत्तरदाई।

    (३) बचे हुए दिनों में स्वयं को सुधारना।

    उ़मर रज़ि अल्लाहू अ़नहु का कथन है: "पूर्व इसके की तुम्हारा हिसाब लिया जाए, अपना हिसाब स्वयं कर लो, पूर्व इसके कि तुम्हें पलड़े में डाला जाए स्वयं को नाप-तोल लो, क्योंकि (प्रलय के दिन) तुम्हारे हिसाब-किताब में इससे सरलता प्राप्त होगी कि तुम आज अपना हिसाब स्वयं कर लो एवं बड़े हिसाब-किताब हेतु स्वयं को सजा लो एवं तैयार कर लो।

    (मुस्नद अल्-फ़ारूक़: २/६१८, इब्ने कसीर, शोधकर्ता: अब्दुल्-मोअ़ती क़लअ़जी, प्रकाशक: दारुल्-वफ़ा-मिस्र, प्रकाशन सन: १४११ हिज०)

    ऐ मुसलमानो! अपने दिनों एवं यात्रियों को पूण्य-कर्मों से भर लो, इससे पूर्व की मृत्यु तुम्हारे जीवन के द्वार पर दस्तक दे।

    आप यह भी ज्ञात रखें कि -अल्लाह आप पर कृपा करे- कि अल्लाह ने आपको एक बहुत बड़े कर्म का आदेश दिया है। अल्लाह का कथन है:

    إِنَّ ٱللَّهَ وَمَلَـٰۤىِٕكَتَهُۥ یُصَلُّونَ عَلَى ٱلنَّبِیِّۚ یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوا۟ صَلُّوا۟ عَلَیۡهِ وَسَلِّمُوا۟ تَسۡلِیمًا.

    अर्थात: "अल्लाह तआ़ला एवं उसके देवदूत अपने दूत पर रहमत भेजते हैं, ए मोमिनो! तुम भी उन पर दरूद भेजो और ख़ूब सलाम भेजते रहा करो।"

    नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "तुम्हारे सर्वश्रेष्ठ दिनों में से शुक्रवार का दिन भी है, इस कारणवश उस दिन मुझ पर अधिक से अधिक दरूद भेजो इसलिए कि तुम्हारा दरूद मुझ पर प्रस्तुत किया जाता है।"

    ???? हे अल्लाह! तू अपने दास एवं दूत पर अपनी रहमत एवं सलामती अवतरित कर, उनके पश्चात आने वाले शासकों, महान आज्ञाकारों एवं प्रलय के दिन तक शुद्धता के साथ उनकी आज्ञाकारीता करने वालों से प्रसन्न हो जा।

    ???? हे अल्लाह! इस्लाम एवं मुसलमानों को सम्मान एवं श्रेष्ठता प्रदान कर, बहुदेव वाद एवं बहूदेव वादियों को अपमानित कर दे एवं अपने धर्म की रक्षा कर।

    ???? हे अल्लाह! संपूर्ण मुस्लिम शासकों को अपनी पुस्तक लागू करनेअपने दिन को सर्वोच्च करने की शक्ति प्रदान कर एवं उन्हें अपने प्रजाओं हेतु कृपालु बना।

    ???? हे अल्लाह! हम तेरे वरदानों के नष्ट होने से, तेरे दिए हुए स्वास्थ्य के पलट जाने से, अचानक आने वाली यातनाओं से एवं तेरे प्रत्येक प्रकार के क्रोध से तेरा शरण मांगते हैं।

    ???? हे अल्लाह! हम तुझसे तेरा शरण मांगते हैं पागलपन से, दस्त से एवं प्रत्येक प्रकार के बुरे रोगों से।

    ???? हे अल्लाह! हमें इस संसार में एवं आख़िरत में भलाई प्रदान कर एवं नरक की यातना से वंचित रख।

    ???? ए अल्लाह के दासो! अल्लाह तआ़ला न्याय का, भलाई का एवं परिवार वालों के संग शुभ व्यवहार करने का आदेश देता है, निर्लज्जता के कर्मों, अभद्र गतिविधियों, एवं अत्याचार व अन्याय से रोकता है, वह स्वयं तुम्हें सलाह दे रहा है कि तुम सलाह को प्राप्त करो, इस कारणवश तुम महान अल्लाह का स्मरण करो, वह तुम्हें याद रखेगा, उसके वरदानों पर आभार व्यक्त करो वह तुम्हें अधिक वरदान प्रदान करेगा, अल्लाह का स्मरण बहुत बड़ी चीज़ है, तुम जो कुछ करते हो वह उस से अवगत है।

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    मोहर्रम १४४३

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    ००९६६५०५९०६७६१

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    तारिक़ बदर

    binhifzurrahman@gmail.com