आशूरा के साथ नवें मुहर्रम का रोज़ा रखना मुसतहब है
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आशूरा के साथ नवें मुहर्रम का रोज़ा रखना मुसतहब है
استحباب صيام تاسوعاء مع عاشوراء
] fgUnh & Hindi &[ هندي
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।
محمد صالح المنجد
अनुवाद : साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
समायोजन : साइट इस्लाम हाउस
ترجمة: موقع الإسلام سؤال وجواب
تنسيق: موقع islamhouse
2012 - 1433
आशूरा के साथ नवें मुहर्रम का रोज़ा रखना मुसतहब है
मैं इस वर्ष आशूरा (दसवें) मुहर्रम का रोज़ा रखना चाहता हूँ। मुझे कुछ लोगों ने बताया है कि सुन्नत का तरीक़ा यह है कि मैं आशूरा के साथ उसके पहले वाले दिन (नवें मुहर्रम) का भी रोज़ा रखूँ। तो क्या यह बात वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसका मार्गदर्शन किया है ?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।
अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : "जब अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आशूरा के दिन रोज़ा रखा और उसका रोज़ा रखने का हुक्म दिया तो लोगों ने कहा : ऐ अल्लाह के पैग़म्बर ! यह ऐसा दिन है जिसकी यहूद व नसारा ताज़ीम (सम्मान) करते हैं। तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जब अगला साल आएगा तो अल्लाह ने चाहा तो हम नवें दिन का (भी) रोज़ा रखेंगे।" (अर्थात् यहूद व नसारा की मुख़ालफत करते हुए मुहर्रम के दसवें दिन के साथ नवें दिन का भी रोज़ा रखेंगे) वह कहते हैं: "फिर अगला साल आने से पहले ही आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का स्वर्गवास हो गया।" इस हदीस को मुस्लिम (1916) ने रिवायत किया है।
इमाम शाफेई और उनके अनुयायियों, तथा अहमद, इसहाक़ और अन्य लोगों का कहना है कि : नवें और दसवें दोनों दिनों का रोज़ा रखना मुस्तहब (श्रेष्ठ) है ; क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने दसवें दिन को रोज़ा रखा और नवें दिन के रोज़े की नीयत (इच्छा प्रकट) की।
इस आधार पर आशूरा के रोज़े की कई श्रेणियाँ हैं : सबसे निम्न श्रेणी केवल आशूरा (दसवें मुहर्रम) का रोज़ा रखना और उस से उच्च श्रेणी उसके साथ नवें मुहर्रम का रोज़ा रखना है, और मुहर्रम के महीने में जितना ही अधिक रोज़ा रखा जाये वह सर्वश्रेष्ठ और अधिक अच्छा है।
यदि आप कहें कि दसवें मुहर्रम के साथ नवें मुहर्रम का रोज़ा रखने की क्या हिक्मत (तत्वदर्शिता) है ?
तो उसका उत्तर यह है कि:
नववी रहिमहुल्लाह ने फरमाया है : हमारे असहाब और उनके अलावा अन्य लोंगों में से विद्वानों ने नवें मुहर्रम के रोज़े के मुस्तहब होने के बारे में कई कारणों का उल्लेख किया है:
(प्रथम) इसका उद्देश्य यहूद का विरोध करना है जो केवल दसवें मुहर्रम का रोज़ा रखते हैं। यह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है . . .
(दूसरा) इसका मक़सद आशूरा के दिन को एक अन्य दिन के रोज़े के साथ मिलाना है, जिस प्रकार कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अकेले जुमा के दिन का रोज़ा रखने से मना किया है . . .
(तीसरा) चाँद में कमी होने और त्रुटि हो जाने के भय से दसवें मुहर्रम का रोज़ा रखने में सावधानी से काम लेना, क्योंकि ऐसा संभव है कि संख्या के हिसाब से नौ मुहर्रम वास्तव में दस मुहर्रम हो। (ननवी की बात समाप्त हुई)
इन कारणों में सबसे मज़बूत कारण अहले किताब (यहूद) का विरोध करना है। शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने फरमाया: नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बहुत सी हदीसों में अहले किताब (यहूद व नसारा) की समानता और छवि अपनाने से मनाही की है . . जैसाकि आशूरा के बारे में आप ने फरमाया: "यदि मैं अगले वर्ष तक जीवित रहा तो नवें मुहर्रम का (भी) रोज़ा रखूँगा।" अल फतावा अल कुब्रा भाग/6
तथा इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने हदीस: "यदि मैं अगले वर्ष तक जीवित रहा तो नवें मुहर्रम का (भी) रोज़ा रखूँगा।" पर टिप्पड़ी करते हुए फरमाया:
"आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नवें मुहर्रम का रोज़ा रखने का जो इरादा किया था उसके अर्थ में इस बात की संभावना है कि आप उसी पर निर्भर नहीं करेंगे बल्कि उसके साथ दसवें दिन के रोज़े को भी मिलायेंगे या तो उसके लिए सावधानी बरतते हुए या यहूद व नसारा का विरोध करते हुए, और यही बात सबसे अधिक राजेह है और इसी का सहीह मुस्लिम की कुछ रिवायतों से संकेत मिलता है।" (फत्हुल बारी 4/245 से समाप्त हुआ).